मृगशिरा नक्षत्र उपाय। Mrigashira Nakshatra Remedy । Mrigashira Nakshatra Upay
- मृगशिरा नक्षत्र के जातको को अंगारक चतुर्थी, अंगारक सष्टी और संकष्टहर चतुर्थी के दिन व्रत रखना चाहिए।
- आपको रविवार के दिन श्री सुब्रह्मण्य स्वामी जी की पूजा करनी चाहिए इससे आपको नक्षत्र स्वामी की कृपा प्राप्त होती है।
- रविवार के दिन लाल मसूर से बनी कोई चीज श्री सुब्रह्मण्य स्वामी को अर्पित करें।
- सूर्य ग्रह शांति धूप उपयोग करने से लाभ प्राप्त होगा।
- इस नक्षत्र में जन्मे जातकों को काले और नीले वस्त्रों को कम से कम पहनना चाहिए यदि संभव हो तो त्याग कर देना चाहिए।
- न्यूज़ चैनल से सबंधित कार्य करने वाले लोगों को लाल रंग के वस्त्र दान करने चाहिए इससे आपको उन्नति मिलने के अवसर अधिक बढ़ जाते हैं।
- मानसिक शांति के लिए यदि आपके लिए संभव हो तो गीतकारों को लाल रंग से बनी चीजों का दान करें।
- इस नक्षत्र के जातकों कभी भी किसी भी जगह दान करते समय याद रखें की उनमें लाल रंग की वस्तु अवश्य हो।
- यदि संभव हो तो गरीबों को अपने हाथों से अपने जन्म नक्षत्र के दिन प्रतिमाह भोजन दान करे इससे आपको सुख-समृद्धि प्राप्त होगी।
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मृगशिरा नक्षत्र का वैदिक मंत्र
इमम्देवा असपत्न गूं सुबध्वं महते क्षत्राय महते
ज्यैष्ठयाय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय ।
इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विषएषवोमी राजासोमोस्माकं
ब्राह्मणानागूं राजा चन्द्रमसे नम: ।।
जातक वैदिक मंत्र का भी प्रयोग कर सकता है हालांकि यह सामान्य विधि है और जातक को विशेष उपाय के लिए आचार्य जी से पत्रिका दिखा के ही उपाय लेना चाहिए। मंगल ग्रह शांति धूप भी कारगर सिद्ध होती है
मृगशिरा नक्षत्र। Mrigashira Nakshatra
मृगशिरा नक्षत्र का क्षेत्रफल 53 डिग्री 20 अंश से 66 डिग्री 40 अंश का होता है। मृगशिरा को अरब सागर में ” अल हक “, ग्रीक में ” ओरिओनिस ” और चीन में ” त्से ” नाम से जाना जाता है। इस नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह हिरण के सिर से माना गया है, इसीलिए इस नक्षत्र को मृगशिरा नक्षत्र भी कहते हैं। इसे नारियल की आँख के समान दिखने वाला भी कहा जाता है।
मृगशिरा के देवता चंद्र, स्वामी ग्रह मंगल और राशि वृषभ 23 डिग्री 20 अंश से मिथुन 06 डिग्री 40 अंश का होता है। वृषभ राशि के स्वामी शुक्र और मिथुन राशि का स्वामी बुध है। भारतीय ज्योतिष में 5वां मृदु और मित्र संबंधी संज्ञा से युक्त नक्षत्र माना गया है। मृगशिरा के तीन तारे होते हैं, जिससे हिरण की आकृति बनती है। यही कारण है वेदों में इस नक्षत्र को मृगशिरा कहा जाने का। मृगशिरा को मृगशीर्ष के नाम से भी जाना जाता है। इसका चिन्ह मृग होता है। इसीलिए कहा जाता है की इस नक्षत्र का वर्णन सूर्य के समान मिलता झूलता है।
मृगशिरा का नाम संस्कृत शब्द के मृग + शिर से पड़ा जिसका अर्थ है- मृग यानि जंगल, वन, खोज, नवनिर्माण, शिकारी, प्रदर्शक या स्वंम कार्य करके दूसरों को बताना आदि होता है। ज्योतिष में इस नक्षत्र को सर्वगुण सम्पन्न, शुभ और नपुंसक नक्षत्र बताया गया है। इस नक्षत्र की जाति – कृषक, योनि – सर्प, योनि वैर – नकुल, गण – देव होती है। इसे दक्षिण दिशा का स्वामी होता है। इस नक्षत्र के जातक को बचपन में बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती है। स्त्रियॉं को गर्भ से संबंधित समस्या, मासिक धर्म समय से न होना या अधिकतर होना, सांस की समस्या होती है।
मृगशिरा नक्षत्र के नाम अक्षर। मृगशिरा नक्षत्र नामाक्षर
इस नक्षत्र के अनुसार जिस जातक का नाम आता है वह इस नक्षत्र के बताए गए गुण दोषों के समान होगा। मृगशिरा के नामाक्षर कुछ इस प्रकार है-
मृगशिरा नक्षत्र के प्रथम चरण का नाम अक्षर – वे
मृगशिरा नक्षत्र के द्वितीय चरण का नाम अक्षर – वो
मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण का नाम अक्षर – का
मृगशिरा नक्षत्र के चतुर्थ चरण का नाम अक्षर – की