पुष्य नक्षत्र उपाय। Pushya Nakshatra Remedy

पुष्य नक्षत्र के उपाय। Pushya Nakshatra Remedy । Pushya Nakshatra Upay

  • पुष्य के जातकों यज्ञ करने वाले ब्राह्मण (यज्ञकर्ता)  का आशीर्वाद लेना चाहिए। इनके आशीर्वाद से नकारात्मक्ता से लड़ने की शक्ति प्राप्त होती है।
  • जब भी आप किसी भी मंदिर या तीर्थ स्थल पर जाएँ तो यज्ञ नारायण के प्रसाद अवश्य लें और संभव हो तो यज्ञ में भी शामिल हों।
  • आपको धार्मिक गुरुओं का सम्मान और उनकी सेवा के लिए आपको थोड़ा समय अवश्य निकालना चाहिए।
  • पुष्य के जातकों किसी भी परिस्थिति में हार नही माननी चाहिए बल्कि कठिन परिस्थितियों का डट कर सामना करना चाहिए।
  • भगवान शिव जी के मंदिर जाकर अन्न जैसे गेहूं, चावल, बाजरा आदि चीजें मंदिर के पुजारी को दान करनी चाहिए उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए।
  • जीवन में शांति और उन्नति प्राप्त करने के लिए अपने माता-पिता और गुरुओं का सम्मान करना चाहिए था उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
  • यदि संभव हो तो गुरु पुष्य योग के दिन दत्तात्रेय मंदिर या साईं मंदिर जाकर दर्शन करें इससे आपको जीवन में शुभकारी फलों की प्राप्ति होगी।
  • शनि ग्रह शांति धूप का प्रयोग भी आप कर सकते हैं।

पुष्य नक्षत्र का परिचय और विशेषताएँ जानने के लिए क्लिक करें

भगवान विष्णु की आराधना करने के लिए धूप, घी, वंदन, महक, फूल और दीपक जलाकर विष्णु भगवान से आराधना करते हुए मिठाई अर्पित करनी चाहिए। यदि जातक पुष्य नक्षत्र के वैदिक मंत्र का जाप करके इसके शुभ प्रभाव कम करना चाहता है तो वह इसके लिए गाय के दूध से बनी खीर और घी लेकर होम करते हुए इस नक्षत्र के वैदिक मंत्र का जाप करना चाहिए इससे आपके जीवन में समस्याएँ कम होती हैं। परंतु प्रतिदिन पुष्य के वैदिक मंत्र का जाप करने से इसके अशुभ प्रभाव जल्दी कम होते हैं। इसके जाप की संख्या कम से कम 108 बार होनी चाहिए। जो इस प्रकार है- 

पुष्य नक्षत्र का वैदिक मंत्र     

ऊँ बृहस्पते अतियदर्यो अर्हाद्द्युमद्विमाति क्रतु मज्जनेषु ।

यद्दीदयच्छ वसऋत प्रजाततदस्मासु द्रविणंधेहिचित्रम् ।।


पुष्य नक्षत्र। Pushya Nakshatra

पुष्य नक्षत्र उपाय

पुष्य नक्षत्र का राशि चक्र में 93 अंश 20 कला से 106 अंश 40 कला क्षेत्रफल होता है। पुष्य को अरब मंजिल में ” अल नत्राह ” ( शेर का नथुना ), ग्रीक में ” कनोपुस ” और चीन सियु में ” कई ” के नाम से जाना जाता है। टॉलेमी के मतानुसार यह नक्षत्र उन तारों में से एक है जिसकी चमक लगभग 1 से 2 सालों में घटी है।

सूर्य के सिद्धांतों के आधार पर देखा जाए तो पुष्य का अर्थ होता है पोषित करना या फिर शिखर तक ले जाना। पुष्य नक्षत्र को धीरे-धीरे हरा भरा करने अथवा मंगलकारी के रूप में भी जाना जाता है। पुष्य के देवता बृहस्पति ( गुरु ), स्वामी ग्रह शनि और राशि कर्क है जो 03 अंश 20 कला से 16 अंश 40 कला क्षेत्रफल में होती है। आकाशीय पिंडों के अध्यन से यह आठवा लघु संज्ञक नक्षत्र होता है।

इस नक्षत्र के तीन तारे होते हैं जो एक समान रेखा में होकर तीर को दर्शाते हैं। इसे कल्याणकारी अथवा देव नक्षत्र भी कहा जाता है। पुष्य नक्षत्र को सभी 27 नक्षत्रों में सबसे प्रिय नक्षत्र माना गया है क्योंकि यह सकारात्मक सत्त्वगुण संपन्न पुरुष नक्षत्र होता है। यह नक्षत्र की जाति क्षत्रिय, योनि छाग, योनि वैर वानर गण देव और आदि नाड़ी है। पुष्य पूर्व दिशा का स्वामी माना गया है।



पुष्य नक्षत्र के नाम अक्षर। पुष्य नक्षत्र नामाक्षर

इस नक्षत्र के अनुसार जिस जातक का नाम आता है वह इस नक्षत्र के बताए गए गुण दोषों के समान होगा। पुष्य के नामाक्षर कुछ इस प्रकार है- 

पुष्य नक्षत्र के प्रथम चरण का नाम अक्षर – हू हु

पुष्य नक्षत्र के द्वितीय चरण का नाम अक्षर – हे

पुष्य नक्षत्र के तृतीय चरण का नाम अक्षर – हो

पुष्य नक्षत्र के चतुर्थ चरण का नाम अक्षर – डा