पुनर्वसु नक्षत्र के उपाय। Punarvasu Nakshatra Remedy
- पुनर्वसु नक्षत्र के सकारात्मक परिणाम के लिए माता सरस्वती, माता अदिति, माता दुर्गा और माँ काली की आराधना करनी चाहिए।
- पुनर्वसु नक्षत्र के जातकों के लिए भगवान राम की पूजा करना, रामायण का पाठ करना, और राम नवमी पर विशेष पूजा अर्चना करना लाभकारी हो सकता है।
- पुनर्वसु अदिति मंत्र का नियमित जाप करें। यह मानसिक शांति, सकारात्मकता, और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने में मदद करता है।
- गुरुवार के दिन पीले वस्त्र पहनें और पीले रंग की चीजों का दान करें। यह बृहस्पति (गुरु) ग्रह को मजबूत करता है, जो पुनर्वसु नक्षत्र के स्वामी हैं।
- भगवान विष्णु या भगवान राम को पीले पुष्प अर्पित करें। यह उपाय आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायक हो सकता है।
- बृहस्पति के मंत्र का जाप करें, जैसे “ॐ बृं बृहस्पतये नमः”। यह गुरु ग्रह के अशुभ प्रभावों को कम करने में सहायक होता है।
- गुरुवार के दिन चने की दाल, हल्दी, पीले वस्त्र, और सोने का दान करें। यह बृहस्पति को प्रसन्न करने के लिए प्रभावी माना जाता है।
- विद्यार्थी गणेश जी की पूजा करें और नियमित रूप से ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप करें। यह ज्ञान और बुद्धि को बढ़ाने में सहायक होता है।
- मानसिक शांति और आत्म-संतुलन बनाए रखने के लिए नियमित रूप से गुरु ग्रह शांति धूप को ज्वलित करें। इससे जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त होती है।
- घर में तुलसी का पौधा लगाएं और उसकी नियमित रूप से पूजा करें। तुलसी के पौधे से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और यह बृहस्पति ग्रह को मजबूत करता है।
- इसके लिए आपको कन्याओं को भोजन करना चाहिए और उन्हे उफार में वस्त्र, पैसा या किसी धातु को दान में दें।
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पुनर्वसु नक्षत्र के इन सरल उपायों को आसानी से करके आप बुरे प्रभावों को कम कर सकते हैं लेकिन यदि आप ये एसबी नही करना चाहते हैं तो आप पुनर्वसु नक्षत्र के वैदिक मंत्र का जाप 108 बार सच्चे मन से प्रतिदिन करें आपके जीवन में इसके बुरे प्रभाव कम होने लगेंगे। लेकिन इसके लिए आपको एक बात का विशेष ध्यान रखना होगा की मंत्र जाप 108 बार से न कम हो और न ज्यादा अन्यथा आपको इसका असर नही दिखेगा। इस नक्षत्र का वैदिक मंत्र कुछ इस प्रकार है-
पुनर्वसु नक्षत्र का वैदिक मंत्र
ऊँ अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता सपिता सुपुत्र: विश्वेदेवा ।
अदिति: पच्चजनाsअदितिर्जात मदितिर्जनित्वम् ऊँ अदित्यै नम: ॥
पुनर्वसु नक्षत्र। Punarvasu Nakshatra
पुनर्वसु नक्षत्र का राशि चक्र में 80 डिग्री 00 अंश से 93 डिग्री 20 अंश क्षेत्रफल होता है। इस नक्षत्र को अरब मंजिल में ” अल धीरा “, ग्रीक में ” जेमिनोरियम ” , चीन सियु में ” त्सिंग ” कहा जाता है। पुनर्वसु का अर्थ पुनर यानि फिर से ( दुबारा ) और वसु का अर्थ सुंदर होता है। कई विद्वानों का मानना है की पुनर्वसु का अर्थ पुनरस्थिति ( पुनरस्थिरीकरण ) होता है। विद्वानों के अनुसार इससे संबन्धित तारों में भी अलग-अलग मत हैं। शाक्य और खंडकातक के मतानुसार पुनर्वसु नक्षत्र के दो तारे होते हैं।
यहा अगर जुड़वा और शीर्षों में देखा जाए तो 1-1 जोड़ी तारो का वर्णन किया गया है। जिससे चार तारे बनते हैं जो धनुष के आकार में रहते हैं। इसी के साथ-साथ यहाँ पर सम्मिलित तारों का वर्णन किया गया है जिसका अर्थ पाँच तारों का समूह माना गया है। यह समूह एक जगह स्थित रहने वाला होता है। पुनर्वसु नक्षत्र के देवता देवी अदिति, स्वामी बृहस्पति ( गुरु ) राशि मिथुन जो 20 अंश 00 कला क्षेत्रफल से कर्क राशि में 03 अंश 20 कला क्षेत्रफल तक होता है। पुनर्वसु नक्षत्र के राशि स्वामी बुध और चन्द्र होते है।
आकाशीय पिंडों के अध्यन में इस नक्षत्र को सातवा स्थान प्राप्त है जिसे चन्द्र भवन चल की संज्ञा से युक्त माना गया है। इस नक्षत्र के चार तारे होते हैं। जो गृह के मुख्य द्वार की दिशा को दर्शाते हैं। पुनर्वसु नक्षत्र को दक्षिण भारत में पुनर्पुसम के नाम से जाना जाता है। इस नक्षत्र का अर्थ अधेरे में उजाले को लाना यानि अंधकार को समाप्त कर रोशिनी को बढ़ाना होता है। यह डर को पैदा करने वाला, सर्वगुण सम्पन्न पुरुष नक्षत्र होता है। इस नक्षत्र की जाति वैश्य, योनि मार्जार, योनि वैर मूषक, गण देव नाड़ी है। पुनर्वसु नक्षत्र उत्तर दिशा का स्वामी होता है।
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पुनर्वसु नक्षत्र के नाम अक्षर। पुनर्वसु नक्षत्र नामाक्षर
इस नक्षत्र के अनुसार जिस जातक का नाम आता है वह इस नक्षत्र के बताए गए गुण दोषों के समान होगा। पुनर्वसु नक्षत्र के नामाक्षर कुछ इस प्रकार है-
पुनर्वसु नक्षत्र के प्रथम चरण का नाम अक्षर – के
पुनर्वसु नक्षत्र के द्वितीय चरण का नाम अक्षर – को
नक्षत्र के तृतीय चरण का नाम अक्षर – हा
नक्षत्र के चतुर्थ चरण का नाम अक्षर – ही