ज्येष्ठा नक्षत्र के उपाय। Jyeshtha Nakshatra Remedy
- भगवान विष्णु की पूजा आराधना करने से इस नक्षत्र से उत्पन्न होने वाली परेशानियाँ कम होने लगती हैं। क्योंकि इस नक्षत्र के स्वामी बुध हैं। पन्ना भी पहन सकते है पर परामर्श अनिवार्य है।
- स्वामी ग्रह बुध की शांति के लिए भगवान विष्णु की आराधना करना सबसे उत्तम माना जाता है।
- बुधवार के दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से जीवन में उत्पन्न होने वाले कष्ट कम होने लगते हैं और जातक जीवन में सफलता की ओर बढ्ने लगते हैं।
- बुध ग्रह शांति धूप को नियमित ज्वलित कर सकते हैं।
- माँ दुर्गा की प्रतिदिन सुबह आरती करने से इसके अशुभ प्रभाव कम होते हैं और शुभ परिणाम प्राप्त होने लगते हैं।
- माता काली की आराधना करने से इस नक्षत्र के पाप प्रभाव कम होते हैं और ज्येष्ठा को बल की प्राप्ति होती है जिससे यह शुभ फल देता है।
- ज्येष्ठा नक्षत्र को बल प्राप्त कराने के लिए लाल, काले, नीले, हरे और आसमानी रंग का उपयोग करें इससे इसके अशुभ प्रभाव कम होते हैं।
- ज्येष्ठा मे होने वाले चंद्र गोचर के समय किए गए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और वे शुभकारी साबित होते हैं।
- इस नक्षत्र के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए अपामार्ग की जड़ बाजू अथवा गले में धारण करें। याद रहे जब ज्येष्ठा पड़े उसी दिन धारण की गई जड़ लाभ देगी।
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यदि जातक इन उपायों को नहीं कर सकता है तो वह ज्येष्ठा के वैदिक मंत्र का जाप कर इस नक्षत्र के अशुभ परिणामों से खुद को बचा सकता है जो कुछ इस प्रकार है परंतु इन मंत्रो को विधि पूर्वक किया जाए तो ये अधिक प्रभावशाली साबित होते हैं जिसके लिए विधि कुछ इस प्रकार है- वैदिक मंत्र का जाप होम करते हुए लगभग 108 बार करना चाहिए जो घी, तिल, तेंदु तथा अपामार्ग की लकड़ियों से होम करना सबसे अधिक प्रभावकारी माना जाता है। यदि यह सब जातक के लिए संभव न हो पाए तो वह सिर्फ वैदिक मंत्र का जाप कर सकता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र का वैदिक मंत्र
ऊँ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रगूँहवे हवेसुहव गूँ शूरमिन्द्रम ।
हृयामिशक्रं पुरुहूतमिन्द्र गूँ स्वस्तिनो मधवाधात्विन्द्र: ऊँ शक्राय नम: ।।
ज्येष्ठा नक्षत्र। Jyeshtha Nakshatra Characterstics
ज्येष्ठा नक्षत्र का राशि चक्र में 226 डिग्री 40 अंश से 240 डिग्री 00 अंश तक विस्तार वाला क्षेत्रफल होता है। ज्येष्ठा नक्षत्र को अरब मंजिल में ” अल कलब ” ( बिच्छू का हृदय ), ग्रीक में ” ऐन्टारेस ” और चीन सियु मे ” सिन ” के नाम से जाना जाता है। ज्येष्ठा नक्षत्र के देवता इन्द्र, स्वामी ग्रह बुध और राशि वृश्चिक 16 डिग्री 40 अंश से 30 डिग्री 00 अंश तक होती है। आकाशीय पिंडो के अनुसार यह 18व गण और तीक्ष्ण संज्ञक नक्षत्र है।
ज्येष्ठा के तीन तारे होते हैं। जो एक समूह में मिलकर कुंडल के आकार की छवि बनाते हैं जिसे हम छतरी के आकार का भी कह सकते हैं। ज्येष्ठा का मूल अर्थ है बड़ा, वरिष्ठ और पद में उच्च स्तर का होता है। ज्येष्ठा को इन्द्र की पत्नी माना जाता हैं। ज्येष्ठा रोहिणी नक्षत्र के विपरीत होता है। यह अशुभ, तामसिक, स्त्री नक्षत्र है। ज्येष्ठा की जाति कृषक, योनि मृग, योनि वैर श्वान, गण राक्षस और नाड़ी अन्त्य होती है। ज्येष्ठा को पश्चिम दिशा का स्वामित्व प्राप्त है।
ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम अक्षर। ज्येष्ठा नक्षत्र नामाक्षर
इस नक्षत्र के अनुसार जिस जातक का नाम आता है वह इस नक्षत्र के बताए गए गुण दोषों के समान होगा। स्वाति नक्षत्र के नामाक्षर कुछ इस प्रकार है-
ज्येष्ठा नक्षत्र – प्रथम चरण – नो
ज्येष्ठा नक्षत्र – द्वितीय चरण – या
ज्येष्ठा नक्षत्र – तृतीय चरण – यी
ज्येष्ठा नक्षत्र – चतुर्थ चरण – यू