अश्लेषा नक्षत्र उपाय। Ashlesha Nakshatra Remedy

अश्लेषा नक्षत्र के उपाय। Ashlesha Nakshatra Remedy । Ashlesha Nakshatra Upay

  • नागदेव की पूजा करनी चाहिए। 
  • सोमवार के दिन सांप को दूध पिलाने से भी इसके बुरे प्रभाव कम होते हैं।
  • भगवान विष्णु की पूजा करने से ही इस नक्षत्र के बुरे प्रभाव कम होते हैं, क्योंकि सर्प भगवान विष्णु की शैय्या है। 
  • भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए क्योंकि शिव जी के गले में सर्प अपना स्थान ग्रहण करते हैं। 
  • यदि जातक भगवान शिव और विष्णु की पूजा सच्चे मन से और नियमित रूप से करे तो इस नक्षत्र के अशुभ प्रभाव धीरे-धीरे खत्म होने लगते हैं। 
  • ॐ नमः शिवाय का जाप निरंतर करने से व्यक्ति इसके अशुभ प्रभावों को कम करते हुए जीवन में उन्नति को प्राप्त कर सकता है।
  • अश्लेषा नक्षत्र के ” ॐ गं ” बीज मंत्र का जाप 108 बार करके भी जातक अपने जीकन में सकारात्मक्ता को  बढ़ा सकता है। 
  • अश्लेषा नक्षत्र के जातकों को चिकित्सा से संबन्धित लोगों से मित्रता करनी चाहिए और उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करना चाहिए।
  • सोमवार के दिन नांगदेव की पूजा करें, नांगदेव की मूर्ति पर दूध चढ़ाएँ यदि हो सके तो नांग को दूध पिलाएँ।
  • बुधवार के दिन हरी मूंग दाल या गुड़ से बनी मिठाई माता दुर्गा को अर्पित करनी चाहिए। इस जन्म नक्षत्र के जातकों को बुधवार के दिन इसे प्रसाद के रूप में ही ग्रहण कर लेना चाहिए।
  • हरी दाल या हरा चारा गाय को खिलना चाहिए इससे मानसिक सतुलन ठीक रहेगा। 
  • अश्लेषा नक्षत्र के दिन घर पर ही किसी वस्तु की मदद से सर्प मूर्ति बनाकर उसे तालाब, नदी या बहते हुए पानी में विसर्जित करनी चाहिए।
  • अश्लेषा नक्षत्र के जातकों को गरीब और असहाय बच्चों को चप्पल, कपड़े और भोजन आदि का दान करना चाहिए इससे सफलता की प्राप्ति होती है।
  • यदि संभव हो तो पक्षियों को प्रतिदिन पानी और दाना खिलाएँ। इससे घर-परिवार में खुशियाँ बढ़ती है। 
  • बुध ग्रह शांति धूप का भी प्रयोग आप कर सकते हैं ।

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यदि जातक इसके बुरे प्रभावों को जल्दी से जल्दी खत्म करना चाहता है तो उसे सोने की धातु से नाग और नागिन का जोड़ा बनवाना चाहिए फिर उसके बाद उसे अपने घर में शुद्ध स्थान पर रख कर प्रतिदिन उसकी पूजा कुमकुम, धूप, केसर, फूल, घी और दीपक जलाकर करनी चाहिए इससे अश्लेषा के अशुभ प्रभाव जल्द से जल्द कम होने एजी जाएंगे। यदि जातक इसके साथ-साथ अश्लेषा नक्षत्र के वैदिक मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करता है तो उसे और अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। वैदिक मंत्र कुछ इस प्रकार है-

अश्लेषा नक्षत्र का वैदिक मंत्र 

ऊँ नमोस्तु सर्प्पेभ्यो ये के च पृथिवी मनु: ये अन्तरिक्षेदिवितेभ्य: सर्प्पेभ्यो नम:।

ऊँ तक्षकेश्वराय नम:।।


अश्लेषा नक्षत्र । Ashlesha Nakshatra

अश्लेषा नक्षत्र उपाय

अश्लेषा नक्षत्र का राशि चक्र में 106 अंश 40 कला से 120 कला 00 कला क्षेत्रफल तक होता है। अश्लेषा को अरब मंजिल में “अल टर्फ” , ग्रीक  में ” हायड्री”, चीन सियु में लियू के नाम से जाना जाता है। इस नक्षत्र का अर्थ गले लगाना परंतु यह सभी नक्षत्रों में सबसे ज्यादा खतरनाक नक्षत्र माना गया है। अश्लेषा के तारों में भी अलग-अलग मतभेद हैं जैसे – खंडकातक इस नक्षत्र के 6 तारे और आकृति घुमावदार बताते हैं। लेकिन वराहमिहिर के अनुसार इस नक्षत्र के 5 तारे और आकृति सर्पाकार होती है। 

अश्लेषा के देवता सर्प, स्वामी ग्रह बुध और राशि चक्र 16 डिग्री 40 अंश से 30 डिग्री 00 अंश तक होता है। इस नक्षत्र को भारतीय आकाशीय पिंडों के माध्यम से नौवा तेज नोकवाली संज्ञा से युक्त गण्ड नक्षत्र माना गया है। अश्लेषा के छः तारे होते हैं। ये तारे आपस में मिलकर गोलाकार आकृति बनाते हैं। ये अंधकार से संबंध रखने वाला स्त्री नक्षत्र होता है।

इस नक्षत्र की जाति चांडाल, योनि मार्जार, योनि वैर मूषक, गण राक्षस, नाड़ी आदि होती है। अश्लेषा को दक्षिण दिशा का स्वामित्व प्राप्त है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सभी 27 नक्षत्रों में इस नक्षत्र को सबसे भयानक और दराबाना नक्षत्र माना गया है। मान्यताओं के अनुसार बताया गया है की कलयुग की शुरुआत भी इसी नक्षत्र से हुई है।



अश्लेषा नक्षत्र के नाम अक्षर। अश्लेषा नक्षत्र नामाक्षर

इस नक्षत्र के अनुसार जिस जातक का नाम आता है वह इस नक्षत्र के बताए गए गुण दोषों के समान होगा। अश्लेषा के नामाक्षर कुछ इस प्रकार है- 

अश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण का नाम अक्षर – पे

अश्लेषा नक्षत्र के द्वितीय चरण का नाम अक्षर पो

अश्लेषा नक्षत्र के तृतीय चरण का नाम अक्षर – रा

अश्लेषा नक्षत्र के चतुर्थ चरण का नाम अक्षर – री