शनि ग्रह क्या है
शनि को लेकर आम धारणा यही है कि यह व्यक्ति के जीवन में परेशानियां लाता है, लेकिन यह बात सत्य नहीं है। शनि ग्रह आपको वही देता है जो आप बोते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि शनि ग्रह आपके कर्मों का आपको फल देता है। शनि की साढ़ेसाती के काल को आपकी परीक्षा का समय कहा जा सकता है। इस समय आपके संयम, सामर्थ्य और निष्पक्षता की परीक्षा शनि देव द्वारा ली जाती है और अगर आप पास हो गये तो आपको जबरदस्त सफलता भी जरुर मिलती है। तो यदि आप भी शनि देव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो मेहनत करें और खुद को एक अच्छा इंसान बनाने की कोशिश करें, झूठ न बोलें और जरुरतमंदों की मदद करें।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में शनि को एक महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है। सभी ग्रहों में इसे न्याधीश का दर्जा प्राप्त है और ऐसा माना जाता है कि शनि की दृष्टि राजा को रंक बना सकती है और रंक को राजा। इसलिये शनि की महादशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतर दशा के दौरान संभलकर रहने की सलाह दी जाती है। आपको बता दें कि शनि कुंडली में जिस भी भाव में विराजमान होता है उस भाव पर तो असर डालता ही है साथ ही तृतीय, सप्तम और दशम भाव पर भी इसकी दृष्टि होती है। कुंडली में शनि ग्रह कहां विराजमान है और इसका फल कैसा होगा इसके बारे में आज हम आपको विस्तार से बताएंगे। हमारे इस लेख को पढ़ने के बाद आप खुद जान सकते हैं कि शनि का आपके जीवन पर क्या असर है। यदि शनि देव आपकी कुंडली में अनुकूल नहीं हैं तो आपको उपाय भी बताए जायेंगे जिनको करने से आप शनि ग्रह को शांत कर सकते हैं। बारह भावों में शनि की स्थिति के अनुसार विस्तृत जानकारी देने से पहले आईये सरसरी नजर डालते हैं साल 2020 में होने वाले शनि के गोचर पर।
शनि ग्रह का कुंडली भाव के मुताबिक प्रभाव
शनि ग्रह का कुंडली के प्रथम भाव में प्रभाव
कुंडली के प्रथम भाव में शनि की उपस्थिति बहुत अच्छी नहीं मानी जाती। शनि के प्रथम भाव में होने से व्यक्ति स्वार्थी और बेमान हो सकता है, इसके साथ ही आलस की भी उसमें अधिकता पायी जाती है। शनि का प्रभाव प्रथम भाव में तब और भी बुरा हो जाता है जब यह किसी शत्रु राशि में हो या इसपर शत्रु ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो। हालांकि शुभ ग्रहों के साथ यदि प्रथम भाव मे शनि युति बनाता है तो अच्छे फल मिलते हैं।
शनि ग्रह की दृष्टि प्रथम भाव से
यदि शनि कुंडली के प्रथम भाव में है तो यह अपनी तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से आपके इन तीनों भावों पर प्रभाव डालेगा।
शनि की तृतीय दृष्टि- शनि की तीसरे भाव पर दृष्टि होने से भाई-बहनों के साथ अच्छे संबंध नहीं रहेंगे और साहस और पराक्रम में भी कमी आएगी।
शनि की सप्तम दृष्टि- सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि के कारण वैवाहिक जीवन में कलह कलेश हो सकता है।
शनि की दशम दृष्टि- दशम भाव पर शनि की दृष्टि होने से कार्यक्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
यदि आपने अपनी कुंडली के अनुसार शनि ग्रह के उपाय कर लिये हैं तो शनि ग्रह आपको अच्छे फल अवश्य देंगे।
सामान्य उपाय- माता-पिता की सेवा करें।
शनि ग्रह का कुंडली के द्वितीय भाव में प्रभाव
यदि शनि कुंडली के द्वितीय भाव में विराजमान है तो ऐसा व्यक्ति बोलचाल में बहुत अच्छा होता है। ऐसे व्यक्ति की बातों की गंभीरता लोगों को प्रभावित करती है। पैतृक संपत्ति से ऐसे व्यक्ति को लाभ प्राप्त होता है। द्वितीय भाव में यदि शनि किसी मित्र राशि में विराजमान है तो व्यक्ति जीवन में सुखों की प्राप्ति करता है। हालांकि ऐसे व्यक्ति कभी भी संतुष्ट नहीं होते और हमेशा कुछ ज्यादा की चाह करते हैं। सगे संबंधियों से ऐसे व्यक्ति को कुछ परेशानियां हो सकती हैं।
शनि ग्रह की दृष्टि द्वितीय भाव से
यदि शनि ग्रह आपके द्वितीय भाव में है तो अपनी तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से यह आपके चतुर्थ, अष्टम और एकादश भाव को प्रभावित करेगा।
शनि की तृतीय दृष्टि- शनि की तृतीय दृष्टि आपके चतुर्थ भाव पर होने से माता के साथ मतभेद हो सकते हैं और सुखों में कमी आ सकती है।
शनि की सप्तम दृष्टि- शनि की सप्तम दृष्टि आपके अष्टम भाव पर होने से मान-सम्मान में कमी आएगी और बेवजह की चिंताएं रहेंगी।
शनि की दशम दृष्टि- नौकरी और व्यवसाय में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय- चींटियों को तिल डालें।
शनि ग्रह का कुंडली के तृतीय भाव में प्रभाव
तृतीय भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को भाग्यवान बनाती है। ऐसा व्यक्ति अपने विरोधियों को मात देता है। एकांत में वक्त बिताना ऐसे लोगों को पसंद आता है। तृतीय भाव आपके भाई-बहनों का होता है इसलिये इस भाव में शनि की स्थिति होने से व्यक्ति अपने छोटे भाई बहनो का विशेष ध्यान रखता है। वहीं यदि शनि ग्रह नीच का हो या पाप ग्रहों की दृष्टि इस पर पड़ रही हो तो जीवन में परेशानियां आ सकती हैं और व्यक्ति परिवार से कटा-कटा सा रहता है।
शनि ग्रह की दृष्टि तृतीय भाव से
यदि शनि कुंडली में तृतीय भाव में विराजमान है तो यह तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से आपके पंचम, नवम और द्वादश भाव को प्रभावित करेगा।
शनि की तृतीय दृष्टि- शनि की तृतीय दृष्टि आपके पंचम भाव पर पड़ेगी जिससे संतान को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है और शिक्षा के क्षेत्र में भी परेशानी आएगी।
शनि की सप्तम दृष्टि- शनि की सप्तम दृष्टि आपके नवम भाव पर पड़ेगी जिससे धर्म कर्म के कामों से आप विमुख हो जाएंगे और भाग्य का साथ भी आपको नहीं मिलेगा।
शनि की दशम दृष्टि- दशम दृष्टि से शनि आपके द्वादश भाव को देखेगा जिससे जीवन में परेशानियां आ सकती हैं।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय- सुंदरकांड का पाठ करें।
शनि ग्रह का कुंडली के चतुर्थ भाव में प्रभाव
इस भाव में शनि की स्थिति इंसान को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बनाती है। यह भाव माता का होता है इसलिये, माता के साथ ऐसे व्यक्ति की अनबन हो सकती है। वहीं अगर शनि चतुर्थ भाव में किसी मित्र राशि में है तो शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं। ऐसे में व्यक्ति को जमीन जायदाद का सुख मिलता है। वहीं इस भाव में स्थित शनि पर यदि किसी पाप ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति माता के सुख से वंचित हो सकता है और साथ ही जीवन में परेशानियां भी आ सकती हैं।
शनि ग्रह की दृष्टि चतुर्थ भाव से
यदि चतुर्थ भाव में शनि की स्थिति है तो तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से आपके षष्ठम, दशम और प्रथम भाव प्रभावित होंगे।
शनि की तृतीय दृष्टि- शनि की तृतीय दृष्टि, षष्ठम भाव पर होने से जीवन में दुख रहेगा और किसी रोग से परेशान रहेंगे।
शनि की सप्तम दृष्टि- शनि की सप्तम दृष्टि आपके दशम भाव पर पड़ेगी जिससे कामकाज में आपको परेशानी हो सकती है।
शनि की दशम दृष्टि- शनि की दशम दृष्टि आपके प्रथम भाव पर पड़ेगी जिससे मानसिक रुप से आप व्यथित रहेंगे।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय– सुबह जल्दी उठकर शनि मंत्र का जाप करें।
शनि ग्रह का कुंडली के पंचम भाव में प्रभाव
पंचम भाव मे शनि की स्थिति व्यक्ति को लंबी आयु प्रदान करती है और व्यक्ति जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी मुश्किल को हल करने में सक्षम होता है। यदि शनि की स्थिति इस भाव में मजबूत है तो व्यक्ति को जमीन जायदाद के मामलों में जीत मिलती है, बच्चों का सुख प्राप्त होता है, कोई उपलब्धि व्यक्ति जीवन में प्राप्त कर सकता है।
शनि ग्रह की दृष्टि पंचम भाव से
यदि शनि पंचम भाव में विराजमान है तो यह अपनी तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से आपके सप्तम, एकादश और द्वितीय भाव को प्रभावित करेगा।
शनि की तृतीय दृष्टि- शनि की तृतीय दृष्टि आपके सप्तम भाव पर होने से वैवाहिक जीवन में परेशानी आ सकती है।
शनि की सप्तम दृष्टि- सप्तम दृष्टि से शनि आपके एकादश भाव को देखेंगे इसलिये किसी भी तरह का लाभ प्राप्त करने में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।
शनि की दशम दृष्टि- दशम दृष्टि से शनि आपके द्वितीय भाव को प्रभावित करेंगे इसलिये पारिवारिक सुखों में कमी आ सकती है.
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय– शनि मंदिर जाकर सरसों का तेल दान करें।
शनि ग्रह का कुंडली के षष्ठमभाव में प्रभाव
षष्ठम भाव को अरि भाव भी कहा जाता है और यह रोग आदि का कारक भाव भी है। इस भाव में शनि के स्थित होने से व्यक्ति कई रोगों से पीड़ित हो सकता है। मांस मदिरा का अत्यधिक सेवन कर सकता है और अपने विरोधियों से पराजित होता है। वहीं शनि की स्थिति यदि इस भाव में मजबूत है तो व्यक्ति दीर्घायु होता है।
शनि ग्रह की दृष्टि षष्ठम भाव से
यदि कुंडली में शनि षष्ठम भाव में विराजमान हैं तो तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से आपके अष्टम, द्वादश और तृतीय भाव को प्रभावित करेंगे।
शनि की तृतीय दृष्टि- शनि की तृतीय दृष्टि अष्टम भाव पर होने से हर काम में देरी आती है।
शनि की सप्तम दृष्टि- सप्तम दृष्टि द्वादश भाव पर होने से धन खर्च होगा और मानसिक तनाव भी रहेगा।
शनि की दशम दृष्टि- शनि की दशम दृष्टि आपके तृतीय भाव पर होने से शारीरिक कमजोरी और छोटे भाई-बहनों से मतभेद।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय– उड़द की दाल दान करें।
शनि ग्रह का कुंडली के सप्तम भाव में प्रभाव
यदि सप्तम भाव में शनि उपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति जीवन भर दुविधा की स्थिति में रहता है। व्यक्ति के करीबी मित्र ही उसे धोखा दे सकते हैं। इस भाव से विवाह आदि का पता भी चलता है इसलिये व्यक्ति की शादीशुदा जिंदगी भी इस घर में शनि की स्थिति के कारण खराब हो सकता है। कोर्ट कचहरी के मामलों में ऐसे व्यक्ति को हार मिलती है। यदि शनि मजबूत स्थिति में है तो वैवाहिक जीवन अच्छा रहता है और जीवन के कई क्षेत्रों में व्यक्ति को सफलता मिलती है।
शनि ग्रह की दृष्टि सप्तम भाव से
शनि ग्रह यदि आपके सप्तम भाव में है तो तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से आपके नवम, प्रथम और चतुर्थ भाव को प्रभावित करेगा।
शनि की तृतीय दृष्टि- शनि की तृतीय दृष्टि नवम भाव पर होने से भाग्य का साथ नहीं मिलेगा।
शनि की सप्तम दृष्टि- सप्तम दृष्टि से शनि प्रथम भाव को देखेंगे जिसके चलते शारीरिक और मानसिक रुप से परेशानी आती है।
शनि की दशम दृष्टि- दशम दृष्टि से शनि चतुर्थ भाव को देखेंगे जिससे माता के साथ संबंध प्रभावित हो सकते हैं।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय– काले उड़द नदी में बहाएं।
शनि ग्रह का कुंडली के अष्टम भाव में प्रभाव
इस भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को गुस्सैल और लालची बना सकती है। ऐसा व्यक्ति बहुत धनी तो नहीं होता लेकिन धन की कमी उसे कभी नहीं होती। ऐसा व्यक्ति अवैध कामों को करने में भी नहीं हिचकिचाता और सट्टेबाजी, जुआ इत्यादि कामों को करने में रुचि लेता है।अष्टम भाव से शनि की दृष्टि- कुंडली में शनि यदि अष्टम भाव में विराजमान है तो तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से दशम, द्वितीय और पंचम भाव को प्रभावित करेगा।
शनि ग्रह की दृष्टि अष्टम भाव से
शनि की तृतीय दृष्टि दशम भाव पर होने से कमाई पर असर पड़ सकता है।
शनि की सप्तम दृष्टि- सप्तम दृष्टि द्वितीय भाव पर होने से परिवार में कलेश रह सकता है।
शनि की दशम दृष्टि- शनि की दशम दृष्टि से पंचम भाव प्रभावित होगा इसलिये शिक्षा प्राप्ति में बधाएं आ सकती हैं। साथ ही प्रेम संबंधी मामलों में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय– भगवान शिव की पूजा करें।
नवम भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को निर्भीक बनाती है। यह भाव धर्म भाव भी कहलाता है इसलिये ऐसा व्यक्ति धर्म-कर्म के कामों को करने में हमेशा आगे रहता है। हालांकि पाप ग्रहों की दृष्टि शनि पर होने से व्यक्ति निर्धन हो सकता है और भाग्य भी उसका साथ नहीं देता। शनि की नवम भाव से तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से एकादश, तृतीय और षष्ठम भाव को प्रभावित करेगा।
शनि ग्रह की दृष्टि नवम भाव से
शनि की तृतीय दृष्टि एकादश भाव पर पड़ेगी जिससे बनते-बनते काम बिगड़ सकते हैं। बड़े भाई-बहनों से मतभेद होगे।
शनि की सप्तम दृष्टि- सप्तम दृष्टि से शनि देव तृतीय भाव को देखेंगे जिससे साहस में कमी आ सकती है।
शनि की दशम दृष्टि- दशम दृष्टि षष्ठम भाव पर होने से रोग इत्यादि हो सकते हैं।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय– नील शनि स्तोत्र का पाठ करें।
शनि ग्रह का कुंडली के दशम भाव में प्रभाव
दशम भाव में शनि के होने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह कर्म भाव कहलाता है इसलिये इस भाव में शनि के होने से व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। समाज में ऐसा व्यक्ति अच्छे काम करता है जिससे परिवार की प्रतिष्ठा बढती है। वहीं यदि शनि कमजोर स्थिति में है तो व्यक्ति विरोधियों से सताया जाता है और माता-पिता के सुख से भी वंचित हो सकता है।
शनि ग्रह की दृष्टि दशम भाव से
दशम भाव से शनि अपनी तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से द्वादश, चतुर्थ और सप्तम भाव को प्रभावित करेगा।
शनि की तृतीय दृष्टि- तृतीय दृष्टि से शनि देव द्वादश भाव को देखेंगे जिससे धैर्य की कमी और विदेश जाने में परेशानी हो सकती है।
शनि की सप्तम दृष्टि- सप्तम दृष्टि से शनि देव चतुर्थ भाव को देखेंगे जिससे जीवन की सुख सुविधाओं में कमी आएगी।
शनि की दशम दृष्टि- दशम दृष्टि से शनि सप्तम भाव को प्रभावित करेगा जिससे वैवाहिक जीवन में कई तरह की परेशानियां आ सकती हैं।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय– पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
शनि ग्रह का कुंडली के एकादश भाव में प्रभाव
ऐसे व्यक्ति को जीवन में कई लाभ प्राप्त होते हैं। काम के प्रति ऐसे व्यक्ति एकाग्र रहते हैं और अपने दम पर धन प्राप्त करते हैं। सरकारी क्षेत्र से ऐसे लोगों को लाभ की प्राप्ति होती है। यदि शनि पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही है तो व्यक्ति खुद से ज्यादा किसी को अहमियत नहीं देगा और लालची होगा।
शनि ग्रह की दृष्टि एकादश भाव से
जिस कुंडली में शनि एकादश भाव में स्थित रहते हैं उसमें अपनी तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से प्रथम, पंचम और अष्टम भाव को प्रभावित करते हैं।
शनि की तृतीय दृष्टि- शनि की तृतीय दृष्टि प्रथम भाव पर होने से शारीरिक और मानसिक कष्ट आ सकते हैं।
शनि की सप्तम दृष्टि- शनि की सप्तम दृष्टि पंचम भाव में होने से संतान को परेशानियां आ सकती हैं।
शनि की दशम दृष्टि- शनि की दशम दृष्टि आपके अष्टम भाव पर होने से गुप्त रोग होने की संभावना रहती है।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय– शनिवार के दिन छाया दान करें।
शनि ग्रह का कुंडली के द्वादश भाव में प्रभाव
कुंडली के द्वादश भाव में शनि की स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती ऐसा व्यक्ति आलसी और क्रोधी हो सकता है। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में ऐसे व्यक्ति को कई परेशानियां आती हैं। दोस्तों और रिश्तेदारों के द्वारा ऐसे व्यक्ति का फायदा उठाया जा सकता है।
शनि ग्रह की दृष्टि द्वादश भाव से
द्वादश भाव में विराजमान शनि तृतीय, सप्तम और दशम दृष्टि से द्वितीय, षष्ठम और नवम भावों को प्रभावित करेगा।
शनि की तृतीय दृष्टि- शनि की तृतीय दृष्टि द्वितीय भाव पर होने से परिवार में कलह कलेश हो सकते हैं।
शनि की सप्तम दृष्टि- सप्तम दृष्टि से शनि षष्ठम भाव को देखेंगे जिससे मानसिक रोग हो सकते हैं।
शनि की दशम दृष्टि- दशम दृष्टि से शनि नवम भाव को देखेंगे जिससे भाग्य कमजोर रहेगा।
यदि आपने कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार उपाय कर दिये हैं तो आप कई तरह की परेशानियों से बच सकते हैं।
सामान्य उपाय– शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करें।
भावों में स्थिति के अनुसार आपको जानकारी देने के बाद आईये अब आगे बढ़ते हैं और जानते हैंं कि सभी बारह राशियों में शनि कैसे प्रभाव दिखाता है या कैसे फल देता है।
मेष राशि में शनि ग्रह
मेष मंगल ग्रह के स्वामित्व वाली राशि है। इस राशि में शत्रु ग्रह शनि का होना शुभ नहीं कहा जा सकता। मेष राशि में शनि के होने से व्यक्ति को रक्त संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। ऐसा व्यक्ति जीवन में असंतुष्ट रहेगा और उतावलेपन में अपना ही अहित कर देगा।
वृषभ राशि में शनि ग्रह
वृषभ राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है जोकि शनि का मित्र ग्रह है। शनि के वृषभ राशि में होने से व्यक्ति बहुत समझदार और सहनशील होता है। ऐसा व्यक्ति विपरीत लिंगियों को आकर्षित करता है और वाद-विवाद की स्थिति में खुद को औरों से बेहतर साबित करके दिखाता है।
मिथुन राशि में शनि ग्रह
बुध और शनि आपस में मित्र हैं। मित्र की राशि मिथुन में शनि की उपस्थिति व्यक्ति के जीवन में खुशियां भरती है। ऐसे व्यक्ति के मित्र उसके सहयोगी साबित होते हैं।
कर्क राशि में शनि ग्रह
कर्क राशि चंद्रमा के स्वामित्व में आती है और शनि और चंद्रमा मित्र नहीं हैं इसलिये कर्क राशि में शनि का होना शुभ नहीं माना जाता। ऐसा व्यक्ति शारीरिक रुप से कमजोर होता है और स्वार्थी प्रवृति का होता है।
सिंह राशि में शनि ग्रह
सिंह राशि का स्वामी ग्रह सूर्य है। वैसे तो सूर्य और शनि को पिता-पुत्र माना जाता है लेकिन यह दोनों ग्रह आपस में शत्रुता रखते हैं। शनि का सूर्य की राशि मेष में स्थित होना शुभ नहीं माना जाता इसलिये जिस जातक की कुंंडली में सिंह राशि में शनि ग्रह होता है उसे सामाजिक स्तर पर अपमान का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति का मतभेद घर के लोगों से हो सकता है।
कन्या राशि में शनि ग्रह
कन्या राशि का स्वामी ग्रह बुध है और बुध-शनि आपस में मित्र हैं। मित्र बुध की राशि में शनि की उपस्थिति व्यक्ति को कारोबार में सफलता दिलाती है। ऐसा व्यक्ति गणितीय विषयों में अच्छा प्रदर्शन करता है और धन कमाने के कई तरीके खोजता है।
तुला राशि में शनि ग्रह
शुक्र की स्वामित्व वाली राशि तुला में शनि की स्थिति जातक को समाज में सम्मान दिलाती है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में पैसों की कमी नहीं होती और पैसों से व्यक्ति लोगों की मदद भी करता है। सुख सुविधा की सारी चीजें ऐसे व्यक्ति के पास मौदूद होती हैं।
वृश्चिक राशि में शनि ग्रह
शनि ग्रह यदि मंगल की स्वामित्व वाली वृश्चिक राशि में है तो व्यक्ति को जीवन के कई क्षेत्रों में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। ऐसा व्यक्ति अपने काम के प्रति एकाग्र होता है। ऐसा व्यक्ति घूमने-फिरने का बड़ा शौकीन होता है।
धनु राशि में शनि ग्रह
बृहस्पति की स्वामित्व वाली धनु राशि में शनि का होना अच्छा माना जाता है। ऐसे व्यक्ति में नेतृत्व के गुण पाए जाते हैं। दुश्मनों पर ऐसा व्यक्ति विजय प्राप्त करता है और बहुत सहनशील होता है।
मकर राशि में शनि ग्रह
मकर शनि की अपनी राशि है, अपनी ही राशि में शनि की उपस्थिति व्यक्ति को मेहनत करने की प्रति प्रेरित करती है। हालांकि ऐसा व्यक्ति जितनी मेहनत करता है उतना धन अर्जित नहीं कर पाता। शनि केे स्वराशि में होने से जातक ईमानदार और निष्ठावान होता है।
कुंभ राशि में शनि ग्रह
कुंभ राशिचक्र की दूसरी राशि है जिसपर शनि ग्रह का स्वामित्व है। कुंभ राशि में शनि का होना व्यक्ति को कई सुविधाएं देता है। ऐसा व्यक्ति ज्ञान का भंडार होता है और समाज में अपनी अलग पहचान बनाता है।
मीन राशि में शनि ग्रह
बृहस्पति ग्रह के स्वामित्व वाली मीन राशि में शनि का होना अच्छा माना जाता है। ऐसे जातक जीवन में सफलता अर्जित करते हैं। अपने मानसिक कौशल से लोगों को प्रभावित करने में ऐसे लोग सक्षम होते हैं।