मूल नक्षत्र उपाय। Moola Nakshatra Remedy
- इस नक्षत्र के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए लाल, काले और सुनहरे रंग का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए।
- जातक मूल नक्षत्र से होने वाली परेशानियों को कम करने के लिए लहसुनिया रत्न धारण कर सकता है इससे जातक के जीवन में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे।
- माता काली की आराधना सबसे प्रभावकारी और असरकार मानी गई है जिसके करने से इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
- देवी निऋति की उपासना करके इस नक्षत्र के अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है।
- भगवान शिव की पूजा वंदना करने से भी इस नक्षत्र के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकते हैं।
- यदि जातक इस नक्षत्र से संबंधित रंगों का उपयोग करता है तो इससे जातक के जीवन में नकारात्मक प्रभाव कम होंगे और सकारात्मक प्रभावों में वृद्धि होगी।
- ऐसे मैं कई विद्वानों का मानना है की यदि जातक मृत्यु का मनन-चिंतन करे तो इससे नक्षत्र की नकरत्मक ऊर्जा को कम किया जा सकता है।
- जब चंद्र का गोचर मूल में तब भगवान शिव की आराधना विशेष बल को प्रकट करती है जिससे नक्षत्र के सकारात्मक प्रभावों में वृद्धि होती है।
- केतू ग्रह शांति धूप का उपयोग भी आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
- मूल में चंद्र के गोचर के दौरान माता काली और दुर्गा की वंदना करने से इस नक्षत्र को बल की प्राप्ति होती है जिससे नकारात्मक्ता कम होने लगती है।
- यदि जातक मूल के दुष्प्रभावों को कम करना चाहता है तो इसके लिए मंदार की जड़ दाँय हाथ की बाजू में बाधे या फिर गले में पहले इससे लाभ मिलेगा।
- मंदार की जड़ को नक्षत्र में चन्द्र के गोचर के दौरान धारण करें इससे जल्द और अधिक लाभ मिलेगा।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मूल नक्षत्र के देवता डर व मृत्यु की देवी ” निऋति ” को माना गया है। इस नक्षत्र के पीड़ित अथवा अशुभ स्थिति में होने पर भगवान शिव का पूजन किया जाता है और भगवान शिव का पूजन इस लिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसे भगवान शिव की रुद्र शक्ति या प्रलयशक्ति के समान माना जाता है। जब किसी जातक का जन्म नक्षत्र मूल हो और वह पीड़ित होकर अशुभ प्रभाव अथवा नकारात्मक प्रभाव दे रहा हो तो जातक को इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए मूल उपाय अथवा उपचार करने चाहिए जो कुछ इस प्रकार हैं।
मूल नक्षत्र का परिचय और विशेषताएँ पढ़ने के लिए क्लिक करें
मूल नक्षत्र का वैदिक मंत्र
ऊँ मातवे पुत्रं पृथिवी पुरीष्यमग्निगूं स्वेयोनावाभारुषा ।
तां विश्वेदेवर्ऋतुभि संवदान: प्रजापतिर्विश्वकर्मा विमुचतु ऊँ निर्ऋतये नम: ।।
मूल नक्षत्र । Moola Nakshatra । Mula Nakshatra
मूल नक्षत्र का राशि चक्र में 240 डिग्री 00 अंश तक विस्तार वाला क्षेत्रफल होता है। मूल नक्षत्र को अरब मंजिल में ” अल शोलह “, ग्रीक में ” स्कॉरपी ” और चीनी सियु मे ” उई ” के नाम से जाना जाता है। मूल का अर्थ जड़ से होता है मूल को विच्रतो के नाम से भी जाना जाता है। जिसका मूल अर्थ दो छोडने वाले हैं। शाक्य ऋषि के मतानुसार यह शेर की पुंछ के समान नौ तारों के समूह से बनी आकृति होती है। यहीं यदि देखा जाए तो खंडकातक सिर्फ 2 तारों का समूह होता है।
अर्थवेद के अनुसार भी मूल को दो तारों का होना माना जाता है। अर्थवेद में इसका वर्णन किया गया है की जब मूल नक्षत्र का उदय होता है तब इससे उत्पन्न होने वाली बीमारियों सा छुटकारा मिलता है। बेंटली के अनुसार बताया गया है की गिनती की शुरुआत में एक जैसे होता है ठीक उसी प्रकार मूल को भी प्रथम स्थान प्राप्त है।
मूल नक्षत्र के देवता निऋति, स्वामी ग्रह केतु और राशि धनु 00 डिग्री 00 अंश से 13 डिग्री 20 अंश तक विस्तार वाले क्षेत्रफल में होती है। आकाशीय पिंडों के अध्ययन में यह 19 व गण्ड, तीक्ष्ण संज्ञक नक्षत्र माना गया है। मूल नक्षत्र के 11 तारे होते हैं। मूल नक्षत्र के देवता को संस्कृत भाषा में निऋतः जिसका अर्थ नुकसान, विनाश, तोड़ना आदि होता है। निऋति देवता को दक्षिण-पश्चिम दिशा का स्वामित्व प्राप्त है।
मूल नक्षत्र के नाम अक्षर। मूल नक्षत्र नामाक्षर
इस नक्षत्र के अनुसार जिस जातक का नाम आता है वह इस नक्षत्र के बताए गए गुण दोषों के समान होगा। स्वाति नक्षत्र के नामाक्षर कुछ इस प्रकार है-
मूल नक्षत्र – प्रथम चरण – ये
मूल नक्षत्र – द्वितीय चरण – यो
मूल नक्षत्र – तृतीय चरण – भा
मूल नक्षत्र – चतुर्थ चरण – भी