पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र उपाय। Purva Ashadha Remedy

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के उपाय। Purva Ashadha Nakshatra Remedy 

  • माता लक्ष्मी या त्रिपुर सुन्दरी की पूजा अर्चना करने से इस नक्षत्र से उत्पन्न होने वाले दोष अथवा पाप प्रभाव कम होने लगते हैं। 
  • पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के जातक हीरा रत्न धारण कर सकते है। शुक्र शांति धूप उपाय अत्यधिक लाभकारी है ।
  • लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करने से भी इसके अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है। 
  • यदि जातक कनकधारा स्तोत्र अथवा महालक्ष्मी अष्टक का पाठ नियमित रूप से करता है तो जातक इससे उत्पन्न होने वाले समस्याओं से बाहर निकलने में सफल होता है।
  • पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के अशुभ प्रभावों को कम करके बल प्राप्ति कराने के लिए साफ-सुथरे कपड़े पहने और अपने आकर्षण को दूसरों की अपेक्षा ज्यादा बढ़ाएँ। 
  • यदि जातक खुद के पहनावे अथवा सजने-सवरने पर ज्यादा ध्यान देता है तो वह इसके अशुभ प्रभावों को कम कर सकता है और बल प्रदान कर सकता है। 
  • यदि जातक गुलाबी या फिर नीले रंग के वस्त्रों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करता है तो जातक इसके सकारात्मक प्रभावों को बढ़ा सकता है। 
  • यदि जातक किसी भी कार्य की शुरुआत नक्षत्र दिन में करते हैं तो उन्हे जल्द सफलता प्राप्त करते हैं। 
  • यदि चंद्र गोचर पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में और चन्द्र महीने में हो तब किसी भी कार्य की शुरुआत करने से बेहद उन्नति प्राप्त होती है।
  • पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के महीने, तिथि तथा नक्षत्र के दिन पूजा करने से शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। 
  • पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के बीज मंत्र “ ऊँ बं ” का जाप लगभग 27 से 108 बार करने से इसके नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं और सकारात्मक प्रभावों में बढ़ोत्तरी होती है।

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता अप ( जल ) को माना गया है। इस नक्षत्र के अनुसार जल को अमृत के समान माना गया हैं क्योंकि जल के बिना जीवन है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जन्मे जातको को अशुभ अथवा पाप प्रभावों से बचने के लिए इसके उपाय अथवा उपचार करने चाहिए। क्योंकि जब इस नक्षत्र का अशुभ प्रभाव जातक के ऊपर होता है तो वह बरवादी की ओर बढ़ता है इसीलिए जातक को इसके अशुभ प्रभावों से बचाव के लिए उपाय अवश्य करना चाहिए।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का वैदिक मंत्र 

ऊँ अपाघमप किल्विषमपत्यामपोरप: ।

अपामार्गत्वमस्मदप: दु:ष्वप्न्यगूंसुव ऊँ अद्भ्योनम: ।।


पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र। Purva Ashadha Nakshatra

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पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का राशि चक्र में 253 डिग्री 20 अंश से 266 डिग्री 40 अंश तक विस्तार वाला क्षेत्रफल होता है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र को अरब मंजिल में ” अल ना’ म ” [ घास चरते हुए जानवर ] , ” ग्रीक में ” साजिटारी ” और चीनी सियु मे ” की ” के नाम से जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूर्वाषाढ़ा का मूल अर्थ – पूर्व मतलब पहले और आषाढ़ा का मतलब जो जीता न गया हो या फिर अशांत होता है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के चार तारे होते हैं जो हाथी के दातों के समान प्रतीत होते हैं। 

कुछ विद्वानों का मत है की यह हाथी की सूंड के समान मानते हैं। इसके नियामक देवता जल को माना गया है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता अपः स्वामी गृह शुक्र और राशि धनु जो 13 डिग्री 20 अंश से 26 डिग्री 40 अंश तक के विस्तार वाले क्षेत्रफल में होती है। आकाशीय पिंडों के अध्यन से पता चलता है की यह 20 व उग्र संज्ञक नक्षत्र कहलाता है। यह अशुभ, नुकसानदायक, रजोगुणी स्त्री नक्षत्र होता है। इसकी जाति ब्राह्मण, योनि वानर, योनि वैर छाग, मनुष्य गण, नाड़ी मध्य होती है। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र को पूर्व दिशा का स्वामित्व प्राप्त है। 

यह अपनी आकृति दो तारो के समूह से बनाता है जिसके कारण इसके दो तारे माने जाते हैं। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का मूल अर्थ जल्द विजय प्राप्त करना या पराजित होना होता है। इसके देवता संस्कृत भाषा में अप तथा संस्कृत शब्द के बहुवचन में जल अथवा पानी के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मांड के रचने में पाँच तत्वों [ जल,  मन, आकाश, वायु और आग ] को सबसे महत्व माना गया है जिसमें जल को पहला तत्व बताया गया है। जल को ज्योतिषीय मतों अनुसार जलो के नाम से भी जाना जाता है।

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पूर्वाषाढ़ा के नाम अक्षर। पूर्वाषाढ़ा नामाक्षर

इस नक्षत्र के अनुसार जिस जातक का नाम आता है वह इस नक्षत्र के बताए गए गुण दोषों के समान होगा। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के नामाक्षर कुछ इस प्रकार है-  

पूर्वाषाढ़ा प्रथम चरण – भू

पूर्वाषाढ़ा द्वितीय चरण –

पूर्वाषाढ़ा तृतीय चरण –

पूर्वाषाढ़ा चतुर्थ चरण –