उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के उपाय। Uttra Ashadha Nakshatra Remedy
- भगवान शिव के पुत्र गणेश जी की पूजा करने से इससे संबन्धित दोष कम होने लगते हैं और जातक सकारात्मक्ता की ओर बढ्ने लगता है।
- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का शुभ रत्न माणिक है और माणिक अगर न पहनना हो तो सूर्य शांति धूप का प्रयोग भी कर सकतें हैं।
- यदि जातक गणेश जी के संकट स्त्रोत का पाठ सच्चे मन और श्रद्धा से करे तो जातक जीवन में उन्नति की ओर बढ़ता है।
- इस नक्षत्र के लिए गणपति जी को सबसे श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इनकी कृपा से जातक बड़ी से बड़ी समस्याओं से बाहर निकल जाता है।
- संकट स्त्रोत को नियमित रूप से करने से जीवन में आने वाल कष्ट, रुकावटें और परेशानियाँ कम होती हैं।
- पीले, नारंगी और हल्के नीले रंग के वस्त्रों अथवा इन रंगों से जुड़ी वस्तुओं का उपयोग करने से जातक को सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।
- यदि जातक अपने जीवन में उन्नति के लिए किसी कार्य की शुरुआत करना चाहता है तो वह उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के समय या तिथि पर करे इससे जातक को जल्द सफलता प्राप्त होती है।
- इस नक्षत्र के पाप स्थिति में होने पर जातक इसके बीज मंत्र “ऊँ भाम्” का प्रतिदिन कम से कम 108 बार जाप करे इससे जल्द शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
- बीज मंत्र के जाप से धन की वृद्धि होती है और यश, सम्मान तथा बीमारी से मुक्ति मिलती है।
- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के वैदिक मंत्र का जाप करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के देवता विश्वदेव को माना गया है। जब किसी जातक का जन्म नक्षत्र उत्तराषाढ़ा हो और उसे अशुभ प्रभाव मिल रहे हों तो जातक को इससे संबन्धित उपायों को करना चाहिए जिससे नकारात्मक प्रभाव कम होने लगेंगे। जातक को इसके उपायों के लिए पूजा अर्चना करने की भी अवश्यकता होती है जो उपाय और पूजा हम आपको नीचे दिय गए बिन्दुओं में बताते हैं।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का वैदिक मंत्र
ऊँ विश्वेदेवा: श्रृणुतेम गूं हवं में ये अन्तरिक्षे य उपद्यविष्ठाय ।
अग्निजिह्वा उतवायजत्र आसद्यास्मिन्बर्हिर्षिमादयध्वम् ।।
ऊँ विश्वेभ्यो देवेभ्यो नम: ।।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र। Uttara Ashadha Nakshatra
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का राशि चक्र में 266 डिग्री 40 अंश से 280 डिग्री 00 अंश तक विस्तार वाला क्षेत्रफल होता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र को अरब मंजिल में ” अल बल्दाह ” [ शहर ] , ” ग्रीक में ” साजिटारी ” और चीनी सियु मे ” ताउ ” के नाम से जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार उत्तराषाढ़ा का मूल अर्थ – उत्तरा मतलब बाद और आषाढ़ा का मतलब जो जीता न गया हो या फिर अशांत होता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के चार तारे होते हैं जो पलंग के समान आकृति बनाते हैं।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के देवता विश्वदेव होते हैं। ज्योतिषय मतानुसार मनुष्य के दिमाग की कोशिकाएँ आकाश में चमकते तारों के समान होती हैं जिनहे विश्वदेव के नाम से जाना जाता है। यदि विश्वदेव को देखा जाए तो ये मस्तिष्क की कोशिकाओं को वश में करते हैं।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के देवता विश्वदेव, स्वामी ग्रह सूर्य और राशि धनु जो 26 डिग्री 40 अंश से 10 डिग्री 00 अंश राशि मकर तक होती है। आकशिय पिंडों के अध्यन में यह 21 व ध्रुव संज्ञक नक्षत्र होता है। यह अच्छा, बढ़ोत्तरी करने वाला, राजा के समान सुख देने वाला स्त्री नक्षत्र होता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की जाति क्षत्रिय, योनि नकुल, योनि वैर सर्प, गण मनुष्य, नाड़ी मध्य होती है। देवता विश्वदेव को दक्षिण दिशा का स्वामित्व प्राप्त है। यह नक्षत्र अपराजित नक्षत्र के नाम से भी जाना जाता है।
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उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के नाम अक्षर। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र नामाक्षर
इस नक्षत्र के अनुसार जिस जातक का नाम आता है वह इस नक्षत्र के बताए गए गुण दोषों के समान होगा। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के नामाक्षर कुछ इस प्रकार है-
उत्तराषाढ़ा के प्रथम चरण का नाम अक्षर – भे
उत्तराषाढ़ा के द्वितीय चरण का नाम अक्षर – भा
उत्तराषाढ़ा के तृतीय चरण का नाम अक्षर – जा
उत्तराषाढ़ा के चतुर्थ चरण का नाम अक्षर – जी